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नागरिक NAGRIK , CITIZEN | MULNIVASI POEM

  हर गलती की हो सजा मुकर्र ऐसा न्याय मैं चाहता हूँ पर देख गरीबों की पीड़ा आँखों से नीर बहता हूँ मेरे देश से हो खत्म गरीबी कुछ ऐसा करना ...

 


हर गलती की हो सजा मुकर्र

ऐसा न्याय मैं चाहता हूँ
पर देख गरीबों की पीड़ा
आँखों से नीर बहता हूँ

मेरे देश से हो खत्म गरीबी
कुछ ऐसा करना चाहता हूँ
फंसते देख अमीरों को
कटपुतली मैं बन जाता हूँ

इस देश की अच्छी हालत हो
नेता मैं बनना चाहता हूँ
पर मिलते ही गद्दी मुझको
इस देश को मैं खा जाता हूँ

लेता हूँ सपथ वैधानिक मैं
अवैधानिक फिर हो जाता हूँ
जहाँ मिलता है मुझको अवसर
मैं सच को झूठ बनाता हूँ

मिले दंड संविधान उलंघन पर
ये लोक तंत्र से चाहता हूँ
है शक्ति वोट की तुम पर
उसका सदुपयोग मैं चाहता हूँ

देता हूँ प्रवचन धर्मो पर
आविष्कार नहीं बताता हूँ
करता हूँ राष्ट्र को मैं गुमराह
प्रगति को मैं खा जाता हूँ

~ नागरिक |महेंद्र कामा

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