है फितरत मेरी देना खुशी और खुशबू सरेआम को बीच रहकर प्रसून्न से चुराना छोड़ दे मक्खी खुशबू अब तो फूल से अगर है तुझ में दम निकाल शहद ...
है फितरत मेरी देना खुशी और खुशबू
सरेआम को
बीच रहकर प्रसून्न से
चुराना छोड़ दे मक्खी
खुशबू अब तो फूल से
अगर है तुझ में दम
निकाल शहद तू अपने मूल से ।
कभी देवों के रथ को
कभी वीरों के पथ को
अपनी खुशबू और रंग से
सजाया है मैंने
और चुरा चुरा कर
रंग और खुशबू पुष्प से
अपना घरौंदा
बनाया है तूने ।
खुशबू और रंगों की
फुहार है मुझसे
बसंत के मौसम में
बहार है मुझसे
हृदय को जीतने का रास्ता
चुना है जहान में
वह उपहार टूट कर
बना है मुझसे ।
~ पुष्प | महेंद्र सिंह कामा
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