कुदरत तेरे रूप अनेक गगन से लेकर धरा तक देख कहीं मीलों तक जल की धारा कहीं धरा पर उपवन प्यारा सिंधू विशाल पठार कहीं है ऋतुओं की बहार य...
कुदरत तेरे रूप अनेक
गगन से लेकर धरा तक देख
कहीं मीलों तक जल की धारा
कहीं धरा पर उपवन प्यारा
सिंधू विशाल पठार कहीं है
ऋतुओं की बहार यंही है
सर्दी गर्मी बरखा देख
कहीं चढ़ा है बर्फ का लेप
कुदरत तेरे रूप अनेक
गगन से लेकर धरा तक देख
कोई गौरा कोई है काला
जिनसे बनी राष्ट्र की माला
भाषाओँ की बड़ी विविधता
पर सबमे ही तिरंगा दिखता
शान तिरंगे की खातिर सब
जान हथेली पर रखते हैं
हिंदू मुस्लिम गले मिलें हैं
दिल में बन्धु भाव है देख
कुदरत तेरे रूप अनेक
गगन से लेकर धरा तक देख
धर्मों की भरमार यहाँ है
बौद्ध ईसाई सिख और जैन
हिन्दू मुस्लिम चैन से रहते
भारत देश में चैन से जीते
बन्धु भाव से हाथ मिलाकर
बोले भारत देश महान
दुनिया में पहचान बनी है
धर्मनिरपेक्ष भारत की शान
मानवता की हवा में देखो इंसा उड़ता जैसे रेत
कुदरत तेरे रूप अनेक
गगन से लेकर धरा तक देख
~कुदरत तेरे रूप अनेक / महेंद्र सिंह कामा
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