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क्रांति की जरूरत KRANTI KI JAROORAT | MULNIVASI POEM

  युग बदलना है तो क्रांति की जरूरत आज है मुश्किलों से जो लड़ें सर पे उन्ही के ताज है मूक बैठें हैं जो जुल्म के भी दौर में नस्लों की बर्ब...

 


युग बदलना है तो क्रांति की जरूरत आज है

मुश्किलों से जो लड़ें सर पे उन्ही के ताज है
मूक बैठें हैं जो जुल्म के भी दौर में
नस्लों की बर्बादी का ये ही तो आगाज है
युग बदलना है तो क्रांति की जरूरत आज है ।
  
बिक रहे संस्थान ख़त्म रोजगार हैं
स्वस्थ सेवा हुई ठप , नही कोई आवाज है
निजाम खुद बना खिलौना दूसरों के हाथ का
संभल जा भारतवासी खतरे में जिंदगी का साज है
युग बदलना है तो क्रांति की जरूरत आज है ।
   
पिछड़े रहे वंचित शिक्षा से, व्यवस्था में ये राज है
गुलामी खड़ी है बाहें फैलाये ,निजाम ही सैय्याज है
तुम समझोगे कब शिकार है सब, भारतवासी
गर्दन पर है तलवार बेखबर बना हुआ परवाज है
युग बदलना है तो क्रान्ति की जरूरत आज है ।
   
कही छिन रहे हैं हक, सम्मान से दूर है नारी
समता वतन से गुम हुई, फिजा नही है प्यारी
उथल पुथल हो रहा है वतन, लूटेरों की संतान से
चंद लोग खुश आवाम है पीड़ित उठी ये आवाज है
युग बदलना है तो क्रांति की जरूरत आज है  ।

~ क्रांति की जरूरत आज है | सरिता सिंह


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