जैसी इंदु बिखराये चांदनी वैसे पुष्प पर भंवरा मंडराये लेकर कटनी चले नीर को मिलो मिल धरा लहराए जैसे तुम हो कोई रागिनी ध्वज की तरह मन म...
जैसी इंदु बिखराये चांदनी वैसे पुष्प पर भंवरा मंडराये
लेकर कटनी चले नीर को
मिलो मिल धरा लहराए
जैसे तुम हो कोई रागिनी
ध्वज की तरह मन में लहराए
नभ की देखो अनंत ऊंचाई
फिर भी दूर कहीं झुक जाए
जैसे पंख फैलाए मोरनी
मन मयूरा मुग्ध हो जाए
जल में पड़ी प्यासी पपीहा को
वर्षा से जीवन मिल जाए
जैसे मन की तुम हो वाहिनी
योवन कि तू सैर कराएं
प्यासी आंखों को फिर तुमसे
जीवन ज्योति सी मिल जाए
जैसे चलकर कोई हंसिनी
प्रेम पथ पर है भरमाये
वैसे मन की अभिलाषा है
कटनी को सागर मिल जाए
~ मन मयूरा मुग्ध हो जाए | महेंद्र सिंह कामा
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