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विकसित राष्ट्र की अभिलाषा VIKSIT RASHTRA KI ABHILASHA |MULNIVASI POEM

  संवर रही हैं राहें राष्ट्र की  संवर रहा परिवेश है चलें नागरिक उन्नत पथ पर यही राष्ट्र उद्देश्य है  मिले सभी को स्वतन्त्रता समता भेदभाव...

 


संवर रही हैं राहें राष्ट्र की 
संवर रहा परिवेश है
चलें नागरिक उन्नत पथ पर
यही राष्ट्र उद्देश्य है 

मिले सभी को स्वतन्त्रता समता
भेदभाव रहित जीवन कैसे
मौलिक हक आयें हिस्से में
सूरज किरणों के जैसे

रोजगार और अच्छी शिक्षा
गिरे नागरिकों कि झोली में
स्नेह ,सफलता ,समृद्धि, आनन्द
भरपूर हो सबकी कोली में

धरातल से लेकर गगन तक
जहाँ तक भी कोई नजर जाये
प्रकृति लाभ मिले सबको
राह में जो भी उसकी आये

कुदरत जैसा निर्मल मन
रहनुमाओं का हो जाये
सुख सुविधा वितरित हों सबको
जैसे तरु फल सबको दे जाये

Sanvar Rahi hai rahen rashtr ki
Sanvar Raha parivesh hai
Chale nagrik unnt path par 
Yahi rashtr uddeshy hai 

Mile sabhi ko savatantrata samata 
Bhedbhav rahit jivan kaise 
Maulik hak aayen hisse me
Suraj kirano ke jaise 

Rojgaar aur achchhi shiksha
Gire nagrikon ki jholi me 
Sneh safalata samrddhi Anand
Bhasrpoor ho sabki koli me 

Dharatal se gagan tak 
Jahan tak bhi koi nazar Jaye
Prakrti labh mile sabako 
Rah me jo bhi usaki aaye

Kudarat jaisa niramal man 
Rahanumaon ka ho jaye
Sukh suvidha vitrit ho Sabako
Jaise taru fal sabako de jaaye


~संवर रही हैं राहें राष्ट्र की / महेंद्र सिंह कामा 

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