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भृष्टाचार BHARSHTACHAAR | MULNIVASI POEM

हालात आज देश के, हुए बद से बत्तर हैं भरष्टाचार के सागर में , डूबी इंसानियत की किस्ती है क्यों जान मेरे देश में , इंसानों की सस्ती है...


हालात आज देश के,
हुए बद से बत्तर हैं
भरष्टाचार के सागर में ,
डूबी इंसानियत की किस्ती है
क्यों जान मेरे देश में ,
इंसानों की सस्ती है

कहीं डूब रहा है जीवन ,
बुरे पानी से हालात हैं
जिन हाथों में खेलें शिशु,
हाथों से छूट रहे वो हाथ है
और सोया है कामा जग सारा ,
मर चुके उनके जज्बात हैं

जहाँ तक पहूँचती हैं नजरें
बस फरेबियों के साथ हैं
जहाँ चलती जीवन की गाड़ी ,
खस्ता पुलों के हालात हैं
हमने सोपा जीवन जिनको ,
गद्दारों के वो हाथ हैं

विश्व पटल पर पिछड़ा हुआ
आज अपना राष्ट्र है
ना देश की कोई करे चिंता
बस लूट रहे दिन रात हैं
अशिक्षित, भूखी जनता के
बुरे अब भी हालात है

आँखों से लुप्त हुई लज्जा
स्नेह का सागर सूख रहा
शिष्टाचार मिटता जाये
बस भ्र्ष्टाचार की छाव में
नहीं साथ हमेशा कुछ रहना
क्यों फिरते है सब तांव में 


~ क्यों जान इतनी सस्ती है |सरिता सिंह 





















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